Bani-Thani

बणी - ठनी, हिंदुस्तान की मोनालिसा 

किशन गढ़ के राजा सावंत सिंह जिन्हे बाद में नागरी दास के नाम से जाना गया की प्रेमिका बणी ठनी की समाधी ब्रज में बरसाना के समीप ऊंचागांव में है! इसी बणी ठनी के नाम पर बणी ठनी चित्रकला शैली का विकास हुआ है जो मिनिएचर आर्ट की एक खास शैली है! निहाल चंद इस शैली का पहला चित्रकार माना गया है!

राजा सावंत सिंह अपने छद्म नाम नागरीदास से राधा कृष्ण की भक्ति उपासना करते थे, लिखते थे! बनी-ठनी के चित्र को उन्होने सबसे पहले अपने पसंदीदा चित्रकार निहाल चाँद के द्वारा चित्रित कराया! उस चित्र की तुलना मोनालिसा से की जाती है! कुछ इतिहासकार कहते है की राजा सावंत सिंह की पार्काल्पना थी बनी-ठनी; कुछ कहते हैं की उनकी सौतेली माँ की नौकरानी (गाने वाली) थी बनी! जिसे बनी ठनी कहा जाने लगा..

राधा कृष्ण के उपासक किशनगढ के राजा सावंत सिंह और बणी ठणी के नाम से जानी जाने वाली दासी बणी ठणी ने अंत समय ब्रज में गुजारा था। राधा नगरी बरसाना के समीप ऊंचागांव में ही बणी ठणी का देहावसान हुआ था। आज भी बणी ठणी की समाधि स्थल पर बनी छतरी किशनगढ की बणी ठणी शैली के चित्रों से सज्जित है।

राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित किशनगढ रियासत पर अठारहवीं सदी के उत्तर मध्य काल में राठौर राजा सावंत सिंह का राज्य था। राजा राधा कृष्ण का उपासक था। वह कवियों तथा चित्रकारांे को आश्रय देता था। साथ ही वह खुद एक अच्छा कवि एवं चित्रकार था। उसने अपनी एक प्रिय दासी की को राजसी परिधान व आभूषण पहनाकर एक लाइव पेंटिंग बनाई। इसी पेंटिंग को बणी ठणी के नाम से जाना जाता है। बणी ठणी का अर्थ होता है सजी संवरी। इस पेंटिंग को उसने अपने राजकीय चित्रकार निहाल चंद को दिखाया। निहाल चंद ने इस पेंटिंग की प्रति तैयार की। बाद में इस शैली में हजारों चित्र बनाए गए। जो इसी शैली में होने के कारण इस शैली का नाम बणी ठणी चित्रकला शैली पड गया। बणी ठणी इस कदर लोकप्रिय हुई कि उस दासी को भी बणी ठणी ही कहा जाने लगा। आज बणी ठणी चित्रकला शैली मिनियेचर आर्ट की दुर्लभ विधाओं में से एक हैं। इस शैली का प्रचार विदेशों तक है। बनी ठणी की नायिका ने राजा सावंत सिंह के साथ अंतिम समय ब्रज में आकर बिताया। बणी ठणी की समाधि पर बने गुबंद में बणी ठणी शैली के चित्र बने हुए है। सरंक्षण के अभाव में यह बहुमूल्य धरोहर बर्बादी के कगार पर है। इस गुंबद में होली, दिवाली, गौचारण व अन्य उत्सवों के चित्रों के साथ साथ राजा सावंत सिंह व बणी ठणी के चित्र बने हुए है। इन चित्रों में श्रीराधा के रूप में चित्रित बणी ठणी के हाथ में कमल देकर लक्ष्मी की तरह बताया गया है वहीं नारी के कमला और पद्मिनी रूप को दर्शाया है। बणी ठणी पर मुगल तथा कश्मारी शैलियों का पूरा प्रभाव हैं पडा और एकचश्म टिपाई, के साथ गदकारी खुलाई की खुली छाया बणी ठणी पर छाई रही। इसमें जहां मुगलकालीन बेगमों सा सुकुबपन और नाजुक पन हैं वहीं झीना ओढना कश्मीरी कहानी कहता है। किशनगढ के राजमहलों की पृष्ठभूमि में उद्यानों और जलाशयों में नौका विहार के अनेक चित्र हैं। महाराज सांवत सिंह की मूल कृति से लेकर राज चित्रकार निहाल चंद की अंतिम बणी ठणी तैयार होने का यह सिलसिला संवत 1755 से 1757 तक चला। इस बीच अन्य चित्र भी बनते रहे। मारवाड शैली की उन्नत कलम का यह स्वर्णकाल कहा जा सकता है। बनी ठणी को नागर रमणी भी कहा गया है। वहीं राजा सांवत सिंह ने नागरी दास के नाम से रचनाएं की है।

राजा सावंत सिंह अपने आख़िरी समय में वृंदावन (9 साल) में रहे थे! उनकी समाधि भी वृंदावन में होनी चाहिए?

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