श्री विवाह पञ्चमी व्रत कथा
!!! श्री विवाह पञ्चमी व्रत कथा !!! मार्गशीर्ष माह, शुक्ल पक्ष, पंचमी तिथि मिथिला के राजा जनक को जब यह समाचार प्राप्त हुआ कि महामुनि विश्वामित्र पधारे हैं तब वे अपने मन्त्री, योद्धा, श्रेष्ठ ब्राह्मण, गुरु शतानन्दजी एवं श्रेष्ठ लोगों सहित प्रसन्नतापूर्वक मुनियों के स्वामी ऋषि विश्वामित्र से भेंट करने पहुँचे। राजा ने मुनि को नतमस्तक होकर प्रणाम किया। मुनियों में श्रेष्ठ विश्वामित्रजी ने प्रसन्न होकर आशीर्वाद दिया। तदुपरान्त ब्राह्मण मण्डली को आदर सहित प्रणाम किया एवं स्वयं को धन्य मानकर राजा आनन्दित हुये। उसी समय भगवान श्रीराम एवं श्रीलक्ष्मण जी दोनों भ्राता आ पहुँचे, जो फुलवारी देखने गये थे। रामजी की मधुर मनोहर मूर्ति को देखकर विदेह राजा जनक विशेष रूप से विदेह अर्थात् देह की सुध-बुध से रहित हो गये। राजा जनक ने मुनि के चरणों में सिर नवाकर प्रेम भरी गम्भीर वाणी से कहा - "हे नाथ! कहिये, ये दोनों सुन्दर बालक मुनिकुल के आभूषण हैं या किसी राजवंश के पालक? अथवा जिसका वेदों ने "नेति" कहकर गान किया है कहीं वह ब्रह्म तो युगलरूप ...