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मियावाकी जंगल Miyawaki Forest (Japanese technique for dense forest in small area by Akira Miyawaki)

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 Miyawaki Forest - a Japanese technique for the dense forest in a small area pioneered by Japanese botanist Akira Miyawaki मियावाकी वन क्षेत्र, छोटे से क्षेत्र में घना जंगल मियावाकी जंगल, जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी द्वारा विकसित एक तकनीक अकीरा मियावाकी कौन है  ? जापान के विख्यात वनस्पति शास्त्री,जिन्होने छोटे जगह में घने वनीकरण की तकनीक को विकसित किया मियावाकी  वन क्षेत्र क्या है ? मियवाकी वनीकरण की एक तकनीक है, जिसमें देसी किस्म के पेड़ पौधे बहुत पास-पास (घने) लगाए जातें हैं! कुछ समय की देखभाल के बाद, यह वन क्षेत्र आत्मनिर्भर होता है! वन 10 गुना तेज़ी से बढ़ता है, 30 गुना घना होता है! यह वन क्षेत्र छोटी जगह (100 वर्ग मीटर) में भी लगाया जा सकता है मियावाकी वन के क्या फायदे हैं  ? मियवाकी तकनीक से लगाए जंगल 10 गुना तेज़ी से बढ़ते है और 30 गुना घने होते है (इतने घने होते हैं की कोई भी आदमी या जानवर जंगल से नही गुजर सकता)! जल्दी बढ़ने के कारण इनका रखरखाव की आवश्यकता नही होती! यह प्राकृतिक जंगल की तरह बढ़ते हैं! देसी किस्म के पेड़ पौधे जो लुप्त हो रहे हैं, उनका  संरक्षण होता है

maholi

महोली महोली गाँव मथुरा के पास है; महोली मधुपुरी का अपभ्रंश है (जिस तरह परसौली परशुराम-पुरी का अपभ्रंश है). यहाँ मधु दैत्य का निवास था; मधु दैत्य की बाद यह मधु-वन उसके पुत्र लवणासुर के अधिकार मे आया! दशरथ पुत्र शत्रुघ्न जी ने लवणासुर का वध किया एवम् यह जंगल को साफ़ करवाकर शहर बसाया! शहर का नाम मधु-पुरी या मथुरा था! हरिवंश पूरण के आधार पर शत्रज्ण जी के द्वारा बसाए गये शहर का नाम मथुरा था! शत्रुघ्न जी के देवरोहण के बाद गोवेर्धन के राजा भीम ने मथुरा को अपने अधिकार क्षेत्र में  ले लिया! उसके बाद यह 'ज़दु' के अधिकार क्षेत्र में आया, इसी 'ज़दु वंश के आख़िरी राजा उग्रसेन थे! अकबर के समय में भी यहाँ पवित्र मधु-कुंड के पास भगवान कृष्ण के चतुर्भुज रूप के मंदिर में भांदौ कृष्ण-पक्ष की एकादशी को मेला लगता था!  आज भी महोली में भांदौ एकादशी पर मेला लगता है!  चतुर्भुज जी  का मंदिर ध्रुव टीला पर ध्रुवजी महाराज के साथ है !  मधु कुण्ड पर ही शत्रुघ्न महाराज का प्राचीन मंदिर है! मधु  कुण्ड भी है और संरक्षित भी है! माहौली के दक्षिण में ताल-वन था (जिसे आजकल तारसी गाँव बोलत

Tesu

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"टेसू एवम् झांझी" अमेरिका में ३१ अक्टूबर को हौलोवीन (halloween) मनाया जाता है... भारत के कुछ बड़े शहरों में भी अमेरिका की नकल करते हुए हौलोवीन की पार्टियाँ होती हैं!... परंतु हम भारतीय गौरे रंग एवम् विदेश से इतने प्रभावित होते हैं की अच्छा या बुरा सब नकल करते है; लेकिन अपनी भारतीय त्योहारों एवम् संस्कृति हो भूल जाते हैं! आपमें से शायद कुछ लोग 'टेसू एवम् झांझी' के बारें में अवश्य जानते होंगे; शायद अपने बचपन में टेसू खेले भी होंगे एवम् झांझी के गीत गाकर अपने मोहल्ले / गाँव में  घूमे भी होंगे! यही हौलोवीन है! अमेरिकन इतिहास एवम् संस्कृति काफ़ी नयी है (केवल ४०० वर्ष)! दुनियाभर से लोग आकर अमेरिका में बसे हैं और आज अमेरिकन हैं! यही भारतीय 'टेसू' अमेरिका में हौलोवीन है! (अमेरिका में इसकी शुरुआत, किदवंती अलग हो सकती है)! लेकिन 'टेसू एवम् झांझी' भारत (ब्रज) से खो से गये हैं!   क्यों? क्या कोई महनुभव टेसू की कथा एवम् झांझी के गाने के बारें में बताएँगे! आशा है, इससे हम बृजवासी शायद अपनी संकृति से पुन: जुड़ पाएँ! ========================

Kishori-Raman

Kishori Raman ठाकुर श्री किशोरी रमण जी महाराज मंदिर लाल दरवाजा रोड पर पोस्ट ऑफीस के सामने स्थित है! ठाकुर जी के इस मंदिर की मथुरा में बहुत सी संपत्तियाँ है, जिनमे ज़्यादातर सैक्षणिक संस्थान, व्यावसायिक स्थान एवम् अन्य संपत्तियाँ है! --- सैक्षणिक संस्थान --- - किशोरी रमण कन्या विध्यालय, घिया मंडी, मथुरा - किशोरी रमण सिलाई, कढ़ाई विध्यालय, घिया मंडी, मथुरा  - किशोरी रमण गर्ल्स इंटर कॉलेज, भैंस बहोरा, मथुरा   - किशोरी रमण इंटर कॉलेज, मथुरा   - किशोरी रमण महाविध्यालय, मथुरा   - किशोरी रमण कन्या महाविध्यालय, मथुरा - किशोरी रमण शिक्षण महाविध्यालय, मथुरा --- व्यावसायिक स्थान --- - किशोरी रमण गंज, घिया मंडी, मथुरा - मंदिर परिसर में दुकानें... - अज्ञात... --- अन्य संपत्तियाँ --- - मंदिर से जुड़ी खेती भूमि... अज्ञात... - अज्ञात... - अज्ञात... भार्गव समाज के बंधु ठाकुर किशोरी रमण मंदिर ट्रस्ट में मुख्यत: सम्मलित रहे हैं! मंदिर से जुड़ी ज़्यादार संपत्तियों पर उनका अख्तियार और अब अतिक्रमण रहा है! घिया मंडी, मथुरा के सैक्षणिक संस्थान बंद हो चुके है

Tarana-i-Hind

---तराना ए हिंदी---  (Anthem of the People of Hindustan) मुहम्मद इक़बाल हम सबने अपने स्कूल के दीनो में गुनगुनाया है... शायद आज मतलब भूल गये हैं!  सोचा पुरानी याद ताज़ा कर लें.. शायद मतलब भी समझ आ जाए! ------------------------------------------------------- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको? उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा यूनान-व-मिस्र-व-रूमा सब मिट गए जहाँ से अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा इक़्बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा! ----------------------------

Clisobora

Clisobora ग्रीक इतिहासकारों, भूगोलवेत्ताओं Arrian (AD 86/89 – 146/160) and Ptolmey (AD 90 – 168) ने क्लिसोबोरा (Clisobora / Klisobora) नाम का शहर यमुना के पर मथुरा के दूसरी ओर बताया गया है! अंग्रेज इतिहासकार भी मानते हैं की यमुना नदी की धारा की दिशा में बदलाव इन हज़ारों सालों मे हुआ है! अगर कटरा केशव देव एवम् श्री वज्रनाभ के द्वारा बनवाए गये मंदिर के अवशेषों के आधार पर आज के कटरा केशव देव के स्थान को ५ हज़ार साल पहले का यमुना किनारे का स्थान मानें तो यमुना जी लगभग १.२६ किमी द ूर हो गयी हैं! जो भूगोल/ भू विज्ञान के द्वारा स्वाभाविक है! तो क्या आज का मथुरा (पुराना शहर - चौक बाजार, भरतपुर दरवाजा, डीग दरवाजा, आदि इलाक़ा) यमुना के पार या यमुना की धारा में था? यमुना जी के धारा प्रवाह के कारण (५ हज़ार साल में) यह इलाक़ा मथुरा शहर के रूप में विकसित होता रहा? क्या आज का भैंस-बहोरा , क्लसिबोरा का अपभ्रंश है?

Bani-Thani

बणी - ठनी, हिंदुस्तान की मोनालिसा  किशन गढ़ के राजा सावंत सिंह जिन्हे बाद में नागरी दास के नाम से जाना गया की प्रेमिका बणी ठनी की समाधी ब्रज में बरसाना के समीप ऊंचागांव में है! इसी बणी ठनी के नाम पर बणी ठनी चित्रकला शैली का विकास हुआ है जो मिनिएचर आर्ट की एक खास शैली है! निहाल चंद इस शैली का पहला चित्रकार माना गया है! राजा सावंत सिंह अपने छद्म नाम नागरीदास से राधा कृष्ण की भक्ति उपासना करते थे, लिखते थे! बनी-ठनी के चित्र को उन्होने सबसे पहले अपने पसंदीदा चित्रकार निहाल चाँद के द्वारा चित्रित कराया! उस चित्र की तुलना मोनालिसा से की जाती है! कुछ इतिहासकार कहते है की राजा सावंत सिंह की पार्काल्पना थी बनी-ठनी; कुछ कहते हैं की उनकी सौतेली माँ की नौकरानी (गाने वाली) थी बनी! जिसे बनी ठनी कहा जाने लगा.. राधा कृष्ण के उपासक किशनगढ के राजा सावंत सिंह और बणी ठणी के नाम से जानी जाने वाली दासी बणी ठणी ने अंत समय ब्रज में गुजारा था। राधा नगरी बरसाना के समीप ऊंचागांव में ही बणी ठणी का देहावसान हुआ था। आज भी बणी ठणी की समाधि स्थल पर बनी छतरी किशनगढ की बणी ठणी शैली के चित्रों से सज्जित है।