Bado-Sako

~~~~~ 'बड़ौ साकौ' ~~~~~
(गजनवी के हमले का वर्णन ) 
- चम्पति कवि 


दोहा-
गजनी बारौ महमदा, दल बादल सौ छाइ ।
रावल तक डायौं कटक, मथुरा घेरी सो आइ ।।
जै रतनेसुर नगरपति, जै महाविद्या माइ ।
चौबेन मौ साकौ कहौं, सब सुनियो ध्यान लगाइ ।।

छन्द-
आयौ महमदा अर्राती, होरी की झर सौ झर्रातौ ।
मन्दिर देव किये औंधे, चौबे बनिया सब रौंधे ।

महल हवेली ठाड़े रोवें, घाट वाट मरघटा में सौंमें ।
चौबे गूजर जादों अहीर, मूँड लिपेटैं कफ्फन चीर ।

लाठी सोटा फरसा बल्लम, जो पायौ सो लियौ अगल्लम ।
मार मार की परी पुकार, मच्यौ पुरी में हाहाकार ।

बेर छौंकरा हींस उपारे, लै लै चले जौम के मारे ।
भठ्ठिन तेल के चढ़े कढ़ाउ, पानी को खलबल खदकाउ ।

भाटा ईंट धरे असमानं, बज्र गिरैं नभ भौकी खानं ।
तीर चढ़ावत लिए कमण्ठा, बाज्यौ काल बली कौ घंटा ।

ज्वाला लोचन भैरौ रूप, फरकल अंग उछंग अनूप ।
कोउ पाइ न पांछै धरियौ, नीच मलेछल छाती छरियो ।

मथुरा मैया प्रान हमारी, याके काजैं सरबस बारी ।
ए आये ए आये हल्ला, पानी उतरे पार मुसल्ला ।

चमकाउत नंगी तरबारा, टोप मुंड घोड़न असवारा ।
घोड़ा झपटत शीश उतारें, हू अल्ला अल्ला डुंकारैं ।

पैलोई मन्दिर तिंडुक ईस, तड़ तड़ तौर्यो खल रजनीस ।
बरसन लगे गनन ते भाटा , ताकी मार जवन दल फाटा ।

झार झूकटे म्हौड़ेन परे, लोऊ लुहार गिरे घुड़चढ़े ।
हवसी कसविन मंद्र गिरायौ, ठाकुर पूजा कौ धन पायौ ।

चूनाँ कंकर चढ़े लुटेरे, महल हवेली लूट विखेरे ।
अवला रोमें बालक विलखैं, अधम भेड़िया कूदैं किलकैं ।

पुर गोपाल बड़ों देवालौ, सोतौ सात देवन संग घालौ ।
खार बजार कूद कैं आये, नगर भूतिया कटक घंसाये ।

चौबेन औ गढ जोधन खेरौ, तहाँ गजनीदल विप्रन घेरौ ।
लट्ठन फोरीं घोरन टाँगैं, फरसन कटै पनाही मांगे ।

जोड़िनु फोरे चपटासीस, भालय छेदे उदर खबीस ।
भादों की झर पथरा परैं, औधे म्हौंडेन गिरगिर परैं ।

गैंल गिरारे नलोथन टीले, माथुर मल्ल परैं नहीं ढीले ।
चौवच्चा पुर चढि नहीं पाऐ, वीरभद्र घटिया पै खाए ।

परिगई संझा अथयौ भान, मुठी प्रान लौटे खसियान ।
तेल उबलतौ खदकत पानी, धार परत गज सुन्ड समानी ।

पैने तीर परत बौछार, होत जिरह बखतर के पार ।
कूतड़ सूकर मूसा बिल्ली, छप छप छपक गिरत छपकिल्ली ।

धूर राख गोवर पुनि कूरौ, बरसै धुंधूकाल भभूरौ ।
लैंड़ा मूत गिरैं सिर आइ, लत पत भए गऐ घबराइ ।

दोहा-
हाल देख सुलतान हूँ, भौं पाथर कौ खम्भ।
ये जौहर बामनन में, मुझ को बड़ा अचम्भ ।

काल तुमहु बरछान सम्हारौ, काफर कोट नबूद कर डारौ ।
दूजे द्यौस परौ फिर हल्ला, दोऊ ओर जूझे रन मल्ला ।

पदम नाथ देवालै ढायौ, जवन कटक तहाँ बहोत कटायौ ।
चौबे कटे हज़ारन रून्डा, लुढकत घरनी अगनित मुन्डा ।

मनि कंचन बटोर खल लीने, और साज बिखरे तजि दीने ।
खारी कूआ धन धन्नो माता, दोऊ कर खरग डटी खल घाता ।

रनचन्डी बीजुरी समाना, खरग घात काटे जु पठाना ।
कट कट काटि बिछाए मुसल्ले, चरनन तरतफ घाइल कल्ले ।

एकु न आगैं वढवे पाई, खाप्पर भरै चामुन्डा माई ।
परौ मुसल्ला दल में हल्ला, या रहीम या अल्ला अल्ला ।

एक नीच पाछे ते आई, दियौ पीठ में खरग घुसाई ।
तोऊ न गिरी लौट खल मारौ, महिसासुर को सीस उतारौ ।

जै मथुरा देवी मेरी मैया, राखियो लाज विप्र कुल रैया ।
बजी दुन्दुभी भेरी जानी, धनियाँ घन्न विमान बिराजीं ।

घन्ना मन्ना खंगू गदना, माथुर वीर डुंकारौ मदना ।
माथुरवीर जमन ललकारे, सहस सहस्त्र रौंद महि डारे ।

पकरि मुंडते मुंड बजाये, टांग टांग धरि चीर गिराये ।
मथुरादेवी घेरा पार्यों, अन्ध मलेच्छ नहीं परत निहार्यो ।

चढे दीर्घ विस्नू पै हरे, केसौपुर केसौ ललकारे ।
फाटिक तोर देव दोऊ खंड़े, जादौं गूजर बीर उमंडे ।

मारे मरे महाबल बीरा, जूझे जोभ महा रनधीरा ।
कटे पुजारी छोड़ न भाजे, मन्दिर सीस कुठारा बाजे ।

दोहा-
त्राहि त्राहि महिदेव मुनि, इत हू करौ सहाइ ।
सब धन लेहु जु इत धयौ, केसौं लेउ बचाइ ।।

धन पै धूर प्रानन की परी, अपुनौ घर राखन की घरी ।
जो हीरि रची सो अदबद होई, याकौं मैटि सकै नहीं कोई ।

तब काबुलियन मन्दिर ढायौ, टीड़ी दल सौ दल उमड़ायौ ।
मन्दिर द्वहारे कोठ खजाने, सब तोरे लूटे मन माने ।

बारै दिवस कठिन दिन राती, कीनी तोर असुर उतपाती ।
बस्ती एक मजूर न पायौ, तब गुलाम दल काम लगायौ ।

मन्दिर ढाइ कसाई राखे, मांस बजार कियौ मद छाके ।
याही बीच असुरं की सेना, बहु देवनतौ रे मद ऐनां ।

नारी एक नगर नहिं पाई, प्रजा सतोहा बन पहुंचाई ।
बौला बन बन खन्डी भारी, तहाँ माथुर कुल रिच्छापारी ।

मुखरारी कौंनई जसौंदी, कुसमां कानन टौड़ बसौंधी ।
तोरे देवल गिनियो नामां, विचलित कर मन करत न कामा ।

देव गतसरम अठभुज माया, जादौं राइ जनम थल छाया ।
गरूड़ केसौ बारहाइ मुरारी, देव स्वयंभू गिरबर धारी ।

अंग्ब चर्चिका देवी वारैं, लांगुर पिपला देवनि हारैं ।
वज्रनाभ कौ महल विशाल, जमुना तट धन कोस निहाल ।

सोमेस्वर सिव अन्नपूरना, कार्पिलेसुर सिव व्यास उरनां ।
सिव गोकरन कौ मंद्र बिसाला, अस्वमेघ बामन मखसाला ।

अंवरीस कौ ऊँचौ मन्दिर, धन ते भरौ विंदुसर कदर ।
लिखौं कहाँ लौं लिख्यौ न जाई, बानी बुद्धि गती चकराई ।

पत्ता टूकन पढि सुनि गाई, चंपत माथुर जोर बनाई ।
सुनौ मिहारी सब सरदारा, जै जै होत उछाह अपारा ।

येह साकौ माथुर कुल केरौ,जुग जुग पावै मान घनेरौ ।
नर कौ मौल हाड़ नहीं मांसा, साहस धीर धरम बिसवासा ।

खरग धार जिन धरमुन त्यागौ, प्रानन मोहन मन अनुरागौ ।
वे जन घन्न अमर पुरबासी, कादर जीवत मरे दुरासी ।

कछू कुल कादर गरव जिहीने, जीव रखान पलाइनु कीने ।।
नहीं बगदे गांमन में छाए, मिठ बोला मीठे कहवाये ।

करूऔ पीतों करूए रहे, कुलमरजादा मधुपुरी गहे ।
मथुरा रही अमर सुख छाई, यमुना मैया सदा सहाई ।






Comments

Sumit Gautam said…
Reference:
http://universitypublications.net/hssr/0204/pdf/U3N242.pdf
Sumit Gautam said…
महमूद गज़नी के नौंवे आक्रमण (1017 AD) में राजा कुलचंद ने सीधे युद्ध किया! उन्ही राजा कुलचंद के किले के अवशेष महावन में सड़क किनारे मिट्टी के तिलों मे दबे हुए दिखते हैं! युद्ध में 50,00 लोग मारे गये! राजा कुलचंद ने कटार से पहले अपनी पत्नी फिर अपनी जान ले ली!

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